विपरीत परिस्तिथियों में भी हमारी आस्था बनी रहनी चाहिए यही मनोबल है ! जो
निश्चय किया जाता है उसे कितनी दृढ़ता से पकड़ा गया है वही मनोबल है ! जगत
गुरु शंकराचार्य के संत बनने के कारण उनका काफी विरोध हुआ इसी कारण उनके
परिवार को जाती से बाहर कर दिया गया, इस सदमे से उनकी माताजी का स्वर्गवास
हो गया लेकिन शंकराचार्य के अलावा उन्हें कन्धा देने कोई नहीं आया ! जानते
है साथियों शंकराचार्य ने ऐसी विकट परिस्तिथि में भी हार नहीं मानी
उन्होंने अपनी माताजी के शव के तीन टुकड़े किये और शमशान घाट तक लेकर गए और
उनका अंतिम संस्कार किया ! इस उस महान व्यक्तित्व की आस्था ही थी जो प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी बनी रही !!
कहने का अभिप्राय यह है की आप जो करना चाहते है उसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस कार्य के प्रति आपकी आस्था कितनी प्रगाढ़ है यही आपके साध्य की सफलता का मूल मंत्र होता है !!
कहने का अभिप्राय यह है की आप जो करना चाहते है उसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस कार्य के प्रति आपकी आस्था कितनी प्रगाढ़ है यही आपके साध्य की सफलता का मूल मंत्र होता है !!
bahut hi sandar ,energetic words thanx hukm
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