Thursday, 28 March 2013

एक यक्ष प्रश्न ................हमारे संघटन कब हमारा भला सोचेंगे ??????


सादर जय माता जी की समाज बंधुओं ..........
होली के पावन अवसर पर रोजमर्रा के कार्यो से अवकाश मिला तो आज फिर दिल में समाज के लिए जानी पहचानी टीस ने बैचेन कर दिया ! बेठ कर मंथन करने लगा मन ! जब आम राजपूत के लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है ऐसे में हमारा समाज उसे बार बार घर से निकलकर ताकत दिखाने के लिहे कहे इससे बड़ा पाखंड और क्या हो सकता है ! मेने भी कई संस्थाओं के लिये कार्य किया है और ये दिली तौर पर महसूस किया है संस्थानों में कई तरह की सभाएं है और सभाओं में सदभावना कम है खिंच तान ज्यादा है ! समाज की समस्याओं का हल किसी के पास नही है और इसकी जहमत तक ये संस्थान नही उठा रहे की कैसे इस समाज के उत्थान के लिए योजनायें और परियोजनाए बनाई जाये ! कोई ऐसा मोडल क्यों नही तेयार कर रहे की जिससे समाज के युवाओं आजीविका के साधनों से जोड़ा जा सके ? क्यों हम हमारी युवा उर्जा का दुरूपयोग ये बेकार ताकत दिखाने के आलावा नही कर पा रहे ! क्यों हम इन राजनीती के दत्तक पुत्र संघटनो के बहकावे में आकर अपने युवाओं के भविष्य बिगाड़ कर समाज उत्थान का थोथा सपना संजोये बेठे है ?इतिहास के तम्बुओं में बेठ कर परम्पराओं का केम्प फ़ायर देख कर कब तक हम हमारा उज्जवल भविष्य तलाशते रहेंगे ! कब तक हमारे ही संघटन मेहनती भाइयों को लात मार कर चापलूस और चाटुकारों की पैरवी कर संघर्ष शील युवाओ की राजनैतिक कब्र खोदते रहेंगे ? हम कब समझेंगे की चापलूसी से मिली सफलता की उम्र बहुत छोटी होती है, पिछले दिनों एक राजनैतिक दल के लिए कार्य करने वाले संघर्ष शील युवा साथी ने बताया की उन्हें बड़ा पद पाने से हमारे ही समाज के कुछ संघटन इसलिए रोकना चाहते है क्योंकि वो अपने किसी चापलूस को इस पद पर बिठाना चाहते है ? इन संघटनो के हिसाब से संघर्ष छोड़ पग चम्पी की राह पकडनी चाहिए ? मन उद्वेलित है हजारों ऐसे ही सवाल उमड़ते रहे पर जवाब की आशा मेने नही पली क्योंकि मेने सभी संघटनो को जान और पह चन लिया है ! आपसे इसलिए शेयर करली की शायद संघटन तो समाज के प्रति अपनी जवाबदारी से भाग सकते है, पर शायद वो आम राजपूत ही इसका जवाब दे पाए जिनके दम पर ये सब उछलते रहते है .................................................................................

Wednesday, 26 December 2012

कल जीवन की सांझ ढले जब, अन्तः पर कोई बोझ न हो....

तुम भावों का उगता सूरज,
जन मानस पर छा जाती हो |
मैं खंडित मन का कवि मेरी,
पंक्ति बन तुम आ जाती हो | |
बनी लेखनी मन स्याही संग,
अक्षर की अवली बनती तुम |
चित्त पटल पर खाका खींचूं,
रेखा भी पहली बनती तुम | |
तुम रजनीगन्धा निशि क्षण तक,
सर सुगंध नभ धरा में भरती |
जाड़े की गुनगुनी धुप का,
आसव बन अनुपूरित करती | |
तुम मधुबन की पारिजात, मैं अपना ही परिहास लिखूंगा |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | |

तुम दरिया की तेज धार मैं,
उथले जल का हूँ श्रींगार |
तुम उपवन की सघन छांव मैं,
मरुप्रदेश का लुटा गांव | |
नयनों में सपनों की छवि तुम,
मैं अश्रु बन कहीं ढलकता |
तुम अधरों की प्यास सकल हो,
मैं सूखी नद बना दरकता | |
तुम पूनम की सीत चांदनी,
दावानल की एक लपट मैं |
तुब पूरब की सूर्य रश्मि हो,
अश्तांचल की एक दहक मैं | |
तुम बसंत, स्वाति सम पावन, वर्णन मैं कई बार लिखूंगा  |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | | ……

तुम नंदन बगिया की देवी,
मैं झुरमुट बीहड़ उपवन का |
तुम चन्दन और मैं माटी हूँ,
तुम मधुबन, मैं शूल हूँ वन का | |
जब गति शांत बने अति निश्छल,
हलचल बन तुम आ जाती हो |
जेष्ठ माह की भरी दुपहरी,
पूर्ण मेघ बन छा जाती हो | |
बरस बनी अमृत धरती पर,
जीवन के नवरंग गिराती |
एक आश की बनी मंजरी,
सर तरंग बन कर इठलाती | |
तुम भावों की भरी गगरिया, मैं उनका मनुहार लिखूंगा |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | | ……

तुम मूरत मन के मंदिर की,
मैं पत्थर एक नदी तीर का |
तुमने दर्द सहा पूजी गयी,
मैं क्या जानूं हाल पीर का | |
अंक तुम्हारे बन पुनीत,
मेरे मन हवन को पूरण कर दें |
प्रेम विनीत बने हर्षित हो,
ह्रदय भाव सब अर्पण कर दें | |
शाश्वत धवल पटल सम्मुख हो,
नयनों में कोई क्षोभ न हो |
कल जीवन की सांझ ढले जब,
अन्तः पर कोई बोझ न हो | |
तुम निधि जीवन सागर की हो, मैं जीवन संघर्ष लिखूंगा |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | |

""" उपेन्द्र दुबे """

Monday, 24 December 2012

म्हारे जितां धरती लेग्या


धरती रा थाम्भा कद धसकै, उल्ट्यो आभो कद आसी ?
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

हात्यां रा होदा कद टूटे, घोड़ा न कद धमकास्यूं ।
मुछ्याँ म्हारी कद बट खावै, खांडा ने कद खड़कास्यूं ।
सुना पड़ग्या भुज म्हारा ए, अरियाँ नै कद जरकासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

म्हारे जितां धरती लेग्या, चाकर आज धणी बणग्या,
दोखीडाँ रै दुःख सूं म्हारै, अन्तै में छाला पड़ग्या ।
आंसू झरती आँखड़ल्यां में, राता डोरा कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

गाठी म्हारी जीभ सुमरता, कान हुआ बोला थारै,
दिन पलट्यो जद मायड़ पल्टी, बेटा नै कुण बुचकारै ।
माँ थारो तिरशूल चलै कद, राकसडा कद आरडासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

थारै तो लाखां बेटा है, म्हारी मायड़ इक रहसी,
हूँ कपूत जायो हूँ थारै, थनै कुमाता कुण कहसी ।
अब तो थारी पत जावै है, बाघ चढ़यां तू कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

१६ अगस्त १९५९ : पूज्य तन सिंह जी

यह जीवन है संग्राम प्रबल

यह जीवन है संग्राम प्रबल
लड़ना ही है प्रतिक्षण प्रतिपल

जिस ने मन में गीता गुनली वह हार–जीत के पार गया
वह हार गया रण में जिस का लड़ते–लड़ते मन हार गया

संख्या बल कभी नहीं लड़ता
लड़ते हैं सौ या पाँच कहाँ
सच के पथ पर निर्भीक बढ़ो
नहीं साँच को आँच यहाँ

जो चक्रव्यूह गढ़ते, उन के माथे पर लिखा मरण देखा
जो सुई नोंक भर भूमि न दें, उन का भी दीन क्षरण देखा
छल के साथ छली का तन, मन, चिंतन, अशुभ विचार गया
वह हार गया रण में जिस का लड़ते–लड़ते मन हार गया

संकल्पों से टकराने में
हर बार झिझकती झंझायें
झरने की तूफ़ानी गति को
कब रोक सकीं पथ–बाधायें

जो लड़ते हैं वे कल्पकथा बनकर जीते इतिहासों में
सदियों के माथे का चुंबन बनकर जीते अहसासों में
कवि का संवेदन विनत हुआ जब–जब भी उनके द्वार गया
वह हार गया रण में जिसका लड़ते–लड़ते मन हार गया

 राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर' 

स्वम ना बदले तब तक दुनियां बदलना नामुमकिन है !

आचार - विचार, रहन - सहन सभी क्रियाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन आने वाला है ! जिसके लिए सम्पूर्ण विश्व तैयारी कर रहा है, उससे पूर्व मुझे स्वम को परिवर्तित करना होगा अपने व्यक्तित्व में जिससे विश्व में आ रहे परिवर्तन में मैं भी अपनी भूमिका सक्रिय रूप से रख सकू ! क्योंकि जब तक हम स्वम ना बदले तब तक दुनियां बदलना नामुमकिन है !

Wednesday, 19 December 2012

यहाँ तमाशा रास्ट्रीय शगल है

देल्ही पैरामेडिकल छात्रा के साथ  बस में हुए सामूहिक दुस्क्रम की घटना एक बार फिर बता दिया की हम हमारी सुरक्षा में सरकारों द्वारा किये जा रहे दावो की कलई खोल कर रख दी है ! देश का गृहमंत्री बजाये ऐसी घटनाओं को रोकने के उपाय बताने के ये हास्यास्पद बयां देता है की बसों के काले शीशे उतरवाए जाये ! सुरक्षा करने वाले सिपाही तो इन सफ़ेद पोश भेड़ियों के घर आटा पिसवाने और लॉन में पानी देने सब्जी लाने एवं अफसरों की कारे धोने में वयस्त है ! एक VIP को तीन सुरक्षा कर्मी उपलब्ध है और देश 761 रास्ट्र वासियों की सुरक्षा पर 1 सुरक्षा कर्मी तैनात है !!
दिनदहाड़े हुई इस अमानवीय बर्बरता का विरोध देश की सडको पर देखने को मिल रहा है ! देश वासियों का गुस्सा जायज भी है, ऐसी घटनाये हृदय विदारक होती है ! पर मुझे लगता है ये शमशान वैराग्य की तरह है ! चंद दिन इस विषय पर थूंक उछालने के पश्चात् हम सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त यही हमारा मूल स्वभाव है ! पर जानते है साथियों इस घृणित घटना के पश्चात् उस दुस्क्रम की शिकार लड़की शारीरिक जख्मो के ठीक हो जाने के पश्चात् जब अपनी लहूलुहान आत्मा और क्षत विक्षत अवचेतन के साथ घर लौटेगी तो कौन उसे अपनाएगा ? क्या यह विचारनीय नहीं है ? तब इसी घटना पर घडियाली आंसू बहाने वाले अपना मुह छुपा दायें बाएं होते नज़र आयेंगे ! सच तो यह है की हम सब तमाशबीन है और तमाशो में उत्तेजना तलाशते फिरते है ! ऐसे घृणित अपराधियों को सजा क्या दी जाये इस पर चर्चा जिस संसद में होनी है, हाँ ये वही संसद है जहा महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण का मसला दसको से धुल चाट रहा है, ऐसे में क्या उम्मीद करे की वहाँ जो तय होगा वह उस भुगत भोगी लड़की के क्षत विक्षत अवचेतन को मरहम लगाने एवं तमाशबीन हिंदुस्तान को राहत देने वाला होगा !!

मनोबल

विपरीत परिस्तिथियों में भी हमारी आस्था बनी रहनी चाहिए यही मनोबल है ! जो निश्चय किया जाता है उसे कितनी दृढ़ता से पकड़ा गया है वही मनोबल है ! जगत गुरु शंकराचार्य के संत बनने के कारण उनका काफी विरोध हुआ इसी कारण उनके परिवार को जाती से बाहर कर दिया गया, इस सदमे से उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया लेकिन शंकराचार्य के अलावा उन्हें कन्धा देने कोई नहीं आया ! जानते है साथियों शंकराचार्य ने ऐसी  विकट परिस्तिथि में भी हार नहीं मानी उन्होंने अपनी माताजी के शव के तीन टुकड़े किये और शमशान घाट तक लेकर गए और उनका अंतिम संस्कार किया ! इस उस महान व्यक्तित्व की आस्था ही थी जो प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी बनी रही !! 
कहने का अभिप्राय यह है की आप जो करना चाहते है उसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस कार्य के प्रति आपकी आस्था कितनी प्रगाढ़ है यही आपके साध्य की सफलता का मूल मंत्र होता है !!