Wednesday, 26 December 2012

कल जीवन की सांझ ढले जब, अन्तः पर कोई बोझ न हो....

तुम भावों का उगता सूरज,
जन मानस पर छा जाती हो |
मैं खंडित मन का कवि मेरी,
पंक्ति बन तुम आ जाती हो | |
बनी लेखनी मन स्याही संग,
अक्षर की अवली बनती तुम |
चित्त पटल पर खाका खींचूं,
रेखा भी पहली बनती तुम | |
तुम रजनीगन्धा निशि क्षण तक,
सर सुगंध नभ धरा में भरती |
जाड़े की गुनगुनी धुप का,
आसव बन अनुपूरित करती | |
तुम मधुबन की पारिजात, मैं अपना ही परिहास लिखूंगा |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | |

तुम दरिया की तेज धार मैं,
उथले जल का हूँ श्रींगार |
तुम उपवन की सघन छांव मैं,
मरुप्रदेश का लुटा गांव | |
नयनों में सपनों की छवि तुम,
मैं अश्रु बन कहीं ढलकता |
तुम अधरों की प्यास सकल हो,
मैं सूखी नद बना दरकता | |
तुम पूनम की सीत चांदनी,
दावानल की एक लपट मैं |
तुब पूरब की सूर्य रश्मि हो,
अश्तांचल की एक दहक मैं | |
तुम बसंत, स्वाति सम पावन, वर्णन मैं कई बार लिखूंगा  |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | | ……

तुम नंदन बगिया की देवी,
मैं झुरमुट बीहड़ उपवन का |
तुम चन्दन और मैं माटी हूँ,
तुम मधुबन, मैं शूल हूँ वन का | |
जब गति शांत बने अति निश्छल,
हलचल बन तुम आ जाती हो |
जेष्ठ माह की भरी दुपहरी,
पूर्ण मेघ बन छा जाती हो | |
बरस बनी अमृत धरती पर,
जीवन के नवरंग गिराती |
एक आश की बनी मंजरी,
सर तरंग बन कर इठलाती | |
तुम भावों की भरी गगरिया, मैं उनका मनुहार लिखूंगा |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | | ……

तुम मूरत मन के मंदिर की,
मैं पत्थर एक नदी तीर का |
तुमने दर्द सहा पूजी गयी,
मैं क्या जानूं हाल पीर का | |
अंक तुम्हारे बन पुनीत,
मेरे मन हवन को पूरण कर दें |
प्रेम विनीत बने हर्षित हो,
ह्रदय भाव सब अर्पण कर दें | |
शाश्वत धवल पटल सम्मुख हो,
नयनों में कोई क्षोभ न हो |
कल जीवन की सांझ ढले जब,
अन्तः पर कोई बोझ न हो | |
तुम निधि जीवन सागर की हो, मैं जीवन संघर्ष लिखूंगा |
तुम शब्दों की शंखनाद, मैं पन्नों पर इतिहास लिखूंगा | |

""" उपेन्द्र दुबे """

Monday, 24 December 2012

म्हारे जितां धरती लेग्या


धरती रा थाम्भा कद धसकै, उल्ट्यो आभो कद आसी ?
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

हात्यां रा होदा कद टूटे, घोड़ा न कद धमकास्यूं ।
मुछ्याँ म्हारी कद बट खावै, खांडा ने कद खड़कास्यूं ।
सुना पड़ग्या भुज म्हारा ए, अरियाँ नै कद जरकासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

म्हारे जितां धरती लेग्या, चाकर आज धणी बणग्या,
दोखीडाँ रै दुःख सूं म्हारै, अन्तै में छाला पड़ग्या ।
आंसू झरती आँखड़ल्यां में, राता डोरा कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

गाठी म्हारी जीभ सुमरता, कान हुआ बोला थारै,
दिन पलट्यो जद मायड़ पल्टी, बेटा नै कुण बुचकारै ।
माँ थारो तिरशूल चलै कद, राकसडा कद आरडासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

थारै तो लाखां बेटा है, म्हारी मायड़ इक रहसी,
हूँ कपूत जायो हूँ थारै, थनै कुमाता कुण कहसी ।
अब तो थारी पत जावै है, बाघ चढ़यां तू कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

१६ अगस्त १९५९ : पूज्य तन सिंह जी

यह जीवन है संग्राम प्रबल

यह जीवन है संग्राम प्रबल
लड़ना ही है प्रतिक्षण प्रतिपल

जिस ने मन में गीता गुनली वह हार–जीत के पार गया
वह हार गया रण में जिस का लड़ते–लड़ते मन हार गया

संख्या बल कभी नहीं लड़ता
लड़ते हैं सौ या पाँच कहाँ
सच के पथ पर निर्भीक बढ़ो
नहीं साँच को आँच यहाँ

जो चक्रव्यूह गढ़ते, उन के माथे पर लिखा मरण देखा
जो सुई नोंक भर भूमि न दें, उन का भी दीन क्षरण देखा
छल के साथ छली का तन, मन, चिंतन, अशुभ विचार गया
वह हार गया रण में जिस का लड़ते–लड़ते मन हार गया

संकल्पों से टकराने में
हर बार झिझकती झंझायें
झरने की तूफ़ानी गति को
कब रोक सकीं पथ–बाधायें

जो लड़ते हैं वे कल्पकथा बनकर जीते इतिहासों में
सदियों के माथे का चुंबन बनकर जीते अहसासों में
कवि का संवेदन विनत हुआ जब–जब भी उनके द्वार गया
वह हार गया रण में जिसका लड़ते–लड़ते मन हार गया

 राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर' 

स्वम ना बदले तब तक दुनियां बदलना नामुमकिन है !

आचार - विचार, रहन - सहन सभी क्रियाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन आने वाला है ! जिसके लिए सम्पूर्ण विश्व तैयारी कर रहा है, उससे पूर्व मुझे स्वम को परिवर्तित करना होगा अपने व्यक्तित्व में जिससे विश्व में आ रहे परिवर्तन में मैं भी अपनी भूमिका सक्रिय रूप से रख सकू ! क्योंकि जब तक हम स्वम ना बदले तब तक दुनियां बदलना नामुमकिन है !

Wednesday, 19 December 2012

यहाँ तमाशा रास्ट्रीय शगल है

देल्ही पैरामेडिकल छात्रा के साथ  बस में हुए सामूहिक दुस्क्रम की घटना एक बार फिर बता दिया की हम हमारी सुरक्षा में सरकारों द्वारा किये जा रहे दावो की कलई खोल कर रख दी है ! देश का गृहमंत्री बजाये ऐसी घटनाओं को रोकने के उपाय बताने के ये हास्यास्पद बयां देता है की बसों के काले शीशे उतरवाए जाये ! सुरक्षा करने वाले सिपाही तो इन सफ़ेद पोश भेड़ियों के घर आटा पिसवाने और लॉन में पानी देने सब्जी लाने एवं अफसरों की कारे धोने में वयस्त है ! एक VIP को तीन सुरक्षा कर्मी उपलब्ध है और देश 761 रास्ट्र वासियों की सुरक्षा पर 1 सुरक्षा कर्मी तैनात है !!
दिनदहाड़े हुई इस अमानवीय बर्बरता का विरोध देश की सडको पर देखने को मिल रहा है ! देश वासियों का गुस्सा जायज भी है, ऐसी घटनाये हृदय विदारक होती है ! पर मुझे लगता है ये शमशान वैराग्य की तरह है ! चंद दिन इस विषय पर थूंक उछालने के पश्चात् हम सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त यही हमारा मूल स्वभाव है ! पर जानते है साथियों इस घृणित घटना के पश्चात् उस दुस्क्रम की शिकार लड़की शारीरिक जख्मो के ठीक हो जाने के पश्चात् जब अपनी लहूलुहान आत्मा और क्षत विक्षत अवचेतन के साथ घर लौटेगी तो कौन उसे अपनाएगा ? क्या यह विचारनीय नहीं है ? तब इसी घटना पर घडियाली आंसू बहाने वाले अपना मुह छुपा दायें बाएं होते नज़र आयेंगे ! सच तो यह है की हम सब तमाशबीन है और तमाशो में उत्तेजना तलाशते फिरते है ! ऐसे घृणित अपराधियों को सजा क्या दी जाये इस पर चर्चा जिस संसद में होनी है, हाँ ये वही संसद है जहा महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण का मसला दसको से धुल चाट रहा है, ऐसे में क्या उम्मीद करे की वहाँ जो तय होगा वह उस भुगत भोगी लड़की के क्षत विक्षत अवचेतन को मरहम लगाने एवं तमाशबीन हिंदुस्तान को राहत देने वाला होगा !!

मनोबल

विपरीत परिस्तिथियों में भी हमारी आस्था बनी रहनी चाहिए यही मनोबल है ! जो निश्चय किया जाता है उसे कितनी दृढ़ता से पकड़ा गया है वही मनोबल है ! जगत गुरु शंकराचार्य के संत बनने के कारण उनका काफी विरोध हुआ इसी कारण उनके परिवार को जाती से बाहर कर दिया गया, इस सदमे से उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया लेकिन शंकराचार्य के अलावा उन्हें कन्धा देने कोई नहीं आया ! जानते है साथियों शंकराचार्य ने ऐसी  विकट परिस्तिथि में भी हार नहीं मानी उन्होंने अपनी माताजी के शव के तीन टुकड़े किये और शमशान घाट तक लेकर गए और उनका अंतिम संस्कार किया ! इस उस महान व्यक्तित्व की आस्था ही थी जो प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी बनी रही !! 
कहने का अभिप्राय यह है की आप जो करना चाहते है उसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस कार्य के प्रति आपकी आस्था कितनी प्रगाढ़ है यही आपके साध्य की सफलता का मूल मंत्र होता है !!

Monday, 17 December 2012

जंगल की आग .... और एक नन्ही चिड़िया



सामाजिक कार्यो को ज्यादा महत्व देने पर  कुछ लोग मुझे कहते रहते है उम्मेद सा आप अकेले समाज में व्याप्त बुराइयों से पार नहीं पा सकते और में हंस कर उन्हें एक कहानी सुनाता हूँ, आप भी सुनिए :-

एक जंगल में आग लगी आग भी इतनी भयावह की कुछ भी शेष बचने की उम्मीदें नज़र नहीं आ रही थी ! सभी जानवरों में जान बचाने की लिए भागमभाग मची थी ! लेकिन एक छोटी नन्ही चिड़िया इन सबके जान बचाने के उपक्रम से बिलकुल उलट जंगल से सटे सरोवर से अपनी नन्ही चोंच में पानी भर कर उस दावानल में डाल रही थी उसका ये क्रम निरंतर जारी था पानी दावानल में डालती फिर उड़ कर सरोवर से चोंच भरती फिर उस भयंकर आग को शांत करने का अपने से बन पड़ने वाला प्रयाश कर रही थी ! जंगल के कई भयंकर जीव उसके इस क्रियाकलाप पर एक नज़र डालते तिरस्कृत करने वाली हंसी के साथ अपनी जान बचाने के जुगाड़ में लग जाते ! एक बन्दर से रहा न गया और उसने नन्ही चिड़िया से पूछ ही लिया ये क्या पागलपन है नन्ही तेरे चोंच भरकर पानी डालने से इस भयंकर दावानल पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,जब जंगल के बड़े बड़े जीव अपनी जान की जुगत में लगे हुए है तो तुम क्यों बेवकूफों की तरह अपनी जान जोखिम में डाल रही हो , साथियों उस नन्ही चिड़िया ने जवाब दिया मरना तो एक दिन सब को है लेकिन जब भी इस जंगल में लगी आग का इतिहास लिखा जायेगा तब मेरा नाम आग बुझाने वालों में लिखा जायेगा ना की तटस्थ रहकर अपनी जान बचाने वालों में !!

Sunday, 16 December 2012

क्षत्रिय ...........

महाभारत काल के पश्च्यात संसार की अद्वितीय जाती के पतन का इतिहास प्रारम्भ होता है ! किन्तु आश्चर्य की बात है अपने पतन की  यात्रा में भी यह क्षत्रिय जाती महानता एवं श्रेष्ठता के क्षेत्र में संसार की अन्य संस्कृतियों और इतिहास पर सदेव छाई रही !

मूल्यांकन के मापदण्ड ............



व्यक्ति का सही मूल्यांकन कर पाना बहुत कठिन है ! अक्सर उपरी दिखावे के जाल में फंसकर हम गलत दिशा पकड़ लेते है और व्यक्ति की वास्तविकता तक नहीं पहुँच पाते ! वेश भूषा, खानपान आदि से भले लगने वाले लोग फरेबी और क्रूर निकल सकते है, तो दिखने में बुरे लगने वाले लोगों में भी पवित्रता के दर्शन हो जाते है ! अक्सर लोग आर्थिक पक्ष की सबलता को देख कर मान एवं सम्मान प्रदर्शित करते है, जबकि अर्थ अपने आपमे कोई सम्मान देने योग्य वस्तु ही नहीं है ! आवश्यकता से अधिक अर्थ का होना दुर्गुणों के मार्ग खोलने की प्रबल सम्भावनाये अपने आप में समाहित किये हुए होता है ! साधारण बोल चाल के शिष्ठाचार से किसी के जीवन मूल्यों को पहचानना भी अंधेरों में भटकने जैसा ही है ! पवित्रता हो तो कडवी बात भी मधुरता प्रदान करती है और उपरी शिष्ठाचार के निचे इर्ष्या और डाह की अग्नि छुप कर बेठी हो तो वह शिष्ठाचार का पर्दा वह गर्मी रोकने में असक्षम होगा ! बड़ी बड़ी राशियाँ लोग चंदे एवं दान में दे देते है, जितनी बड़ी रकम होती है लोग उसे उतना ही बड़ा दानी बना देते है, लेकिन वह दान जो बदले में सम्मान चाहता हो, किसी भवन पर अपना नाम लिखवाना चाहता हो अथवा प्रशस्ति पत्र की चाह रखता हो, वह तो दान की श्रेणी में ही नहीं आता ! वह तो मात्र सौदा ही हो सकता है ! नौकरी में घूसखोरी नहीं करने वाले को हम इमानदार कहते है, यह उसकी विशेषता अवश्य है की वह गलत तरीकों से धनार्जन नहीं कर रहा है ! परन्तु क्या ईमानदारी का क्षेत्र यही तक सिमित हो गया है ! वयव्हार में कितनी पवित्रता है, कितनी निर्मलता है इसी से सच्चा मूल्यांकन हो सकता है ! ईमानदारी को आर्थिक पहलु पर ही क्यों लटकाकर छोड़ दिया जाये ! ईमानदारी हमारे जीवन के सिद्धांतो के प्रति क्यों नहीं ! इमानदारी पूर्वक हम हमारे उत्तरदायित्वों का निर्वहन क्यों नहीं करे !

Saturday, 15 December 2012

हर तरफ यही हंगामा चलो चलो चलो .... कहा चले कब तक चलते रहे यूँही बिना वजह ????

पिछले 10 वर्षो में जगह जगह आयोजित सामाजिक कार्यकर्मो में 10 लाख से अधिक की तादात में राजपूत कौम कई तथाकथित ठेकेदारों के सानिध्य में एकत्रित हो चुकी है ! मेरे हिसाब से हर राजपूत का

इन सामाजिक समारोहों में शामिल होने पर एवरेज 500/- (प्रति राजपूत) का खर्चा तो हुआ ही है !
इस हिसाब से 10,00,000 X 500 = 50,00,00000 /- ( पचास करोड़ रु ) इन भव्य आयोजनों पर उड़ाकर इन ठेकेदारों ने समाज को क्या दिया ? उन्नति या अवनति यह आकलन करने का समय है ! क्या यह रुपया समाज को मिलने वाले किसी सरकारी आर्थिक पैकेज से कमतर था ?? क्या इन आयोजनों ने किसी आम राजपूत का हित साधने का किंचित मात्र भी प्रयास किया है ? या अपनी राजनैतिक दुकाने बचाने में आम राजपूत की उर्जा का महज इस्तेमाल करना ही ऐसे आयोजनों का मंतव्य रहा है ? समझ से परे है !!!
 मै आप सभी समाज बंधुओं से जरुर जानना चाहता हूँ की क्या ऐसे ही किसी राजनैतिक कम सामाजिक कार्यकर्मो का आयोजन समाज का भला कर देंगे ? क्या हम किसी भी संघटन के यह कहने मात्र से कही भी चले जायेंगे की """ यह प्रजातंत्र है, सर गिनवाने है, कटवाने की जरुरत नहीं है""

हम आम लोग कब ये बताने का साहस जुटा पायेंगे की हमने लाखो की तादात में सर गिनवाए है विगत 10 वर्षो में, तो फिर सर गिनवाने से होने वाला फायदा कोन खा गया ? या फायदे के नाम पर हमें अब तक क्यों बेवकूफ बनाया जा रहा है ? अरे हम आम लोग है हमारा फ़ायदा नहीं कर सकते तो कम से कम मत करो लेकिन हमारे ''' बच्चो का भविष्य बेचकर ''' आपके बच्चो का भविष्य निर्माण ''' तो किसी कीमत पर नहीं होने देंगे !!

निज़ाम बदलने के लिए युवाओ को आना होगा आगे .....