सामाजिक कार्यो
को ज्यादा महत्व देने पर कुछ लोग मुझे
कहते रहते है उम्मेद सा आप अकेले समाज में व्याप्त बुराइयों से पार नहीं पा सकते
और में हंस कर उन्हें एक कहानी सुनाता हूँ, आप भी सुनिए :-
एक जंगल में आग
लगी आग भी इतनी भयावह की कुछ भी शेष बचने की उम्मीदें नज़र नहीं आ रही थी ! सभी
जानवरों में जान बचाने की लिए भागमभाग मची थी ! लेकिन एक छोटी नन्ही चिड़िया इन
सबके जान बचाने के उपक्रम से बिलकुल उलट जंगल से सटे सरोवर से अपनी नन्ही चोंच में
पानी भर कर उस दावानल में डाल रही थी उसका ये क्रम निरंतर जारी था पानी दावानल में
डालती फिर उड़ कर सरोवर से चोंच भरती फिर उस भयंकर आग को शांत करने का अपने से बन
पड़ने वाला प्रयाश कर रही थी ! जंगल के कई भयंकर जीव उसके इस क्रियाकलाप पर एक नज़र
डालते तिरस्कृत करने वाली हंसी के साथ अपनी जान बचाने के जुगाड़ में लग जाते ! एक
बन्दर से रहा न गया और उसने नन्ही चिड़िया से पूछ ही लिया ये क्या पागलपन है नन्ही
तेरे चोंच भरकर पानी डालने से इस भयंकर दावानल पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,जब जंगल के बड़े बड़े जीव अपनी जान की जुगत में लगे हुए है तो तुम क्यों
बेवकूफों की तरह अपनी जान जोखिम में डाल रही हो , साथियों उस नन्ही चिड़िया
ने जवाब दिया मरना तो एक दिन सब को है लेकिन जब भी इस जंगल में लगी आग का इतिहास
लिखा जायेगा तब मेरा नाम आग बुझाने वालों में लिखा जायेगा ना की तटस्थ रहकर अपनी
जान बचाने वालों में !!
हिन्द ब्लॉग जगत मे आपका हार्दिक स्वागत है उमेद सिंह जी सारगर्भित लघु कथा है जो हमे अपने कर्त्व्ये को निभाने की प्रेणना देती है
ReplyDeleteधन्यवाद गजेन्द्र सिंह जी !
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